रात बहुत गहराने लगी है,
सन्नाटा गूंजता है कानो में |
पर इन रोशन तारों की टिम-टिम में,
अँधेरा छंटने लगा राहों से |
सूरज अगर ढल भी जाये, चांदनी जब जब छाये,
इस रात ने कब किसी को रोका है |
इस रात ने कब किसी को रोका है |
अभी हिम्मत तू बचा के रख,
देखो आगे क्या होता है |
कुछ आंसू आँख से टपके हैं,
कुछ पलकों में ही सो गए,
कुछ आंसू वो बेबाक बेचारे,
वो अन्दर ही खो गए |
मंजिल मिल जाने पे राही,
इन आंसुओं का मोल नहीं होता है,
अभी इनको तू बचा के रख,
देखो आगे क्या होता है |
जब सपने तुमने देखे थे,
तो क्या उनसे शर्त लगाई थी?
क्या मिटा देगा तू अपनी हंसती
क्यूँकि कभी कोई कसम खाई थी?
सपनों को है अभी पूरा होना,
दिल तू अभी से क्यूँ रोता है,
सफ़र अभी है बहुत ही लम्बा,
देखो आगे क्या होता है |
2 comments:
♥
छवि जी
सस्नेहाभिवादन !
बहुत हौसला बढ़ाने को प्रेरित करती रचना है …।
जब सपने तुमने देखे थे,
तो क्या उनसे शर्त लगाई थी?
वाह वाऽऽह… ! क्या अंदाज़ है !
क्या मिटा देगा तू अपनी हस्ती
क्यूंकि कभी कोई कसम खाई थी?
सपनों को है अभी पूरा होना,
दिल तू अभी से क्यूं रोता है,
सफ़र अभी है बहुत ही लम्बा,
देखो आगे क्या होता है
प्रवाह प्रशंसनीय है …
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
thank you!
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